–लक्ष्मीकांता चावला
शराब के कहर से दुखी, परेशान और अनाथ महिलाएं हो जाती हैं। जब कोई पुरुष घर में शराब पीकर आता है तब भी वहां डर का वातावरण बनता है। बच्चे भी पिटते हैं और पत्नी तो बहुत बार पीटी जाती है। जब कोई नकली या बनावटी शराब से मरने वालों की बहुत बड़ी संख्या एक ही बार मौत के मुंह में चली जाती है तो वहां भी रोने के लिए बुढ़ापा बचता है। महिलाएं विधवा होकर, बुढ़ापा अनाथ होकर और बच्चे बेबस होकर रह जाते हैं। जहां तक सरकारों का संबंध है, किसी सरकार ने आज तक वैसा डंडा नहीं उठाया जैसा पंजाब सरकार तंबाकू के विरुद्ध उठाती है।
अगर तंबाकू की तरह ही शराब के विरुद्ध भी डंडा उठा लिया जाए और जन जागरण अभियान सारे साधु संत, मंदिर गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिद वाले शराब के विरुद्ध चलाएं तब जाकर समाज का कल्याण हो सकता है। सच्ची बात यह है कि जब तक महिलाएं शराब के विरुद्ध कमर कसकर नहीं खड़ी हो जातीं, जिस तरह मणिपुर की महिलाओं ने हाथ में मशाल और डंडा लेकर रात रात भर पहरेदारी की थी, वैसे ही पंजाब और देश की महिलाओं को करनी होगी। पंजाब तो पहले आगे आए, क्योंकि बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सब शराब पीने लग गए। वैसे तो अब शराब पीने वाली लड़कियों की गिनती भी बढ़ती जा रही है। अभी जागो, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।