-लक्ष्मीकांता चावला
ऐसा लगता है जैसे बिल्लियों के भागो से छिक्का टूट गया है। खाली बैठे राजनेताओं को शराब की मौतों ने जैसे बहुत बेचैन कर दिया है। यह भूल गए कि नकली शराब बेचने, पीने, पिलाने का धंधा राजनीतिक नेताओं के बिना चल ही नहीं सकता। गांवों में कौन शराब पीता-पिलाता है, कौन नकली बांटता है, कहां भट्ठियां चलती हैं यह सब वे राजनीतिक कार्यकर्ता जानते हैं जो आज सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करते हैं और कोरोना से बचने के जितने नियम हैं सब तोड़ रहे हैं।
इस प्रदर्शन के समय पुलिस को भी संघर्ष करना पड़ता है। जिन परिवारों के रोटी कमाने वाले और दूसरे परिजन मारे गए उनके दुख के नाम पर राजनीतिक विपक्षी दल विशेषकर अपने चुनावी मंच सजाने में लगे हैं। मेरी यह अपील है कि कोरोना को काबू आ लेने दें और उसके बाद जितने धरने प्रदर्शन, राजनीतिक शक्ति का दिखावा करना है, बाद में कर लें अभी तक जिसको सचमुच दुख है शराब से मरने वालों के परिवारों के पाए जाएं और उनके पालन पोषण का, बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करें।